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क्यों होता है मानसिक रोग (सिजोफ्रेनिया)/पर्सनालिटी डिसऑर्डर Why Mental Disease (Sizophrenia) / Personality Disorder

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(@neeraj-goel)
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इस रोग की शुरुआत तभी हो जाती है जब बच्चा गर्भ में होता है । जो महिलाएं गर्भावस्था के समय डिप्रेशन तथा तनाव में रहती हैं या डर और गुस्से में रहती हैं, दुखी रहती हैं तो बच्चा इस रोग को जन्म से ही लेकर पैदा होता है ।

कुछ अन्य कारण हैं इस रोग के जो इस प्रकार हैं :-

गुस्से में उन्माद कि स्थिति तक पहुँच जाना ही सिजोफ्रेनिया है । बच्चे के जन्म से पांच वर्ष तक का समय बहुत ही महत्वपूर्ण होता है । इन पांच वर्षों में बच्चे के आस-पास का वातावरण, घर का माहौल, माता-पिता की मानसिक स्थिति, आर्थिक स्थिति आदि का बच्चे पर बहुत प्रभाव पड़ता है । अतः एक स्वस्थ वातावरण बच्चे को मिले इस बात का खास ख्याल रखना चाहिए ।

सिजोफ्रेनिया एक मानसिक बीमारी है । इसमें रोगी कल्पनाओं में ही विचरण करने लगता है । लोगों से डरेगा, एक कोने में बैठा रहेगा, कई बार वॉयलेंट भी हो जाता है । कई बार रोगी बार-बार हाथ धोएगा, किसी को पसंद नहीं करता तो उसे देखकर वॉयलेंट हो जायेगा इत्यादि ।

अति महत्वकांक्षी व्यक्ति भी जब अपना लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाता तो इस बीमारी का शिकार हो जाता है ।

ज्योतिषीय विचार करें तो जिस बच्चे का चन्द्र पीड़ित होता है तो बडा होकर वो बच्चा इस रोग का शिकार जल्दी होता है ।

राहु,शनि , केतु अगर जन्म चन्द्र को पीड़ित करे तो जातक इस बीमारी से पीड़ित होता है । जातक बहुत जल्दी डिप्रेशन में आ जाता है । या तो वह चुप हो जाता है या फिर वॉयलेंट हो जाता है ।

जब राहु केतु कि दशान्तर्दशा आती है या चन्द्र की दशान्तर्दशा आती है तो वो दशा जातक की बीमारी को बढ़ा देती है ।

उपाय

बच्चा नकारात्मक, गुस्सैल हो जाये, कल्पनाओं में खोया रहे तो बच्चे का चंदरमा बली करें । इसके लिए चाँदी के गिलास में दूध/पानी पिलायें, गंगाजल का प्रयोग करें, माँ के सानिध्य में अधिक से अधिक रखें, मैडिटेशन कराएं ।

रोगी को समाज से जोड़ें । सुख-दुःख में शामिल करे । रोगी से ज्यादा से ज्यादा बात करें । समारोहों में ले जाएँ । घर का माहौल खुशनुमा रखें ।

लाल रंग के वस्त्र, लाल मिर्च, तला हुआ खाना, मिच-मसाले वाला खाना न दें ।

पूर्णमासी की रात को छोटी इलायची डालकर खीर बनाकर चाँद की रौशनी में रखें और सुबह खिलाएं

सिजोफ्रेनिया के रोगी को ठीक होने में वक़्त लगता है अतः धैर्य रखें क्योंकि ऐसा रोगी खुद को रोगी नहीं मानता । ऐसे रोगी को आपका प्यार ही ठीक कर सकता है ।

सबसे जरुरी है जब बच्चा माँ के गर्भ में हो तो माँ के खान-पान के साथ-साथ ये भी ध्यान रखें कि वो खूब खुश रहे । किसी तरह का मानसिक दबाव उस पर न रहे तभी एक स्वस्थ बच्चा पैदा होगा क्योंकि ये बच्चे ही तो सभ्य समाज के निर्माता हैं


   
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